Monday, 25 July 2016

अनजान रास्ते

अकेले अनजान रास्ते पे चले,
राह में लोग हज़ारों मिले..

कुछ कहे साथ चलो कुछ दूर,
कुछ बस बिन देखे निकल गये..

कुछ हाथ पकड़ के आगे ले गए,
कुछ धोखा दे वही छोड़ गए...

सपनों को पाने कि चाह लिए,
फिर उठे और तनहा चल दिए...

जब गिरे लड़खड़ाए टूट गए,
वापस पीछे जाने को बस मुड़ गए..

पलट के देखा तो थे वो साये,
जिनकी उँगली पकड़ बचपन में क़दम आगे थे बढ़ाए..

कहा 'डरो मत, हम साथ है तुम्हारे,
बस आगे चलो, सपने है तुमको पाने'..

नई उम्मीद और भरोसे के सहारे,
फिर मुड़ गए उस राह को निहारे...

चल दिए फिर वही अनजान रास्ते,
राह में जहाँ लोग हज़ारों मिले...

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